भारतीय सिनेमा की सबसे विवादित फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ को माना जाता है। यह फिल्म 1974 में अमृत नाहटा द्वारा बनाई गई थी। फिल्म 1975 में रिलीज होने वाली थी। उस समय इमरजेंसी का दौर चल रहा था। और इमरजेंसी के दौर में यह नियम था कि पहले हर फिल्म का सरकार निरीक्षण करती थी, इसके बाद ही वह फिल्म रिलीज हो सकती थी।
फिल्म को देखने के बाद सरकार को लगा कि यह फिल्म संजय गांधी के ऑटो मैन्युफैक्चरिंग प्रोजेक्ट का मजाक उड़ाती है और सरकार की नीतियों को बदनाम भी करती है। इसलिए इस फिल्म पर पूर्णतया बैन लगा दिया गया और फिल्म के प्रिंट भी जला दिए गए।
दरअसल ‘किस्सा कुर्सी का’ फिल्म में राजनीतिक पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘जनता की कार’ था। उस वक्त मारुति कार संजय गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी। जिसे जनता की कार बताया गया था।
इसे देखते हुए जुलाई में सेंसर बोर्ड ने 51 आपत्तियां लगाते हुए, निर्देशक से जवाब मांगा। निर्देशक के द्वारा दिए गए सभी स्पष्टीकरण को नकार दिया गया और फिल्म की रिलीज पर पर बैन लगा दिया गया। इतना ही नहीं फिल्म के ओरिजिनल प्रिंट भी जलाकर नष्ट कर दिए गए थे।
1977 में जब जनता पार्टी की सरकार आई तो उन्होंने संजय गांधी और वीसी शुक्ला पर आरोप लगाया कि उन्होंने ही फिल्म के प्रिंट मुंबई में मंगा कर गुड़गांव स्थित मारुति कारखाने में जलवा दिए है। मुकदमा दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में चला।
संजय गांधी पर आरोप यह भी लगा कि उन्होंने गवाहों पर दबाव बनाने की कोशिश की थी और उन्हें फिल्म के प्रिंट नष्ट करने का दोषी पाया गया था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत रद्द करते हुए 1 महीने के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया था।
हालांकि इमरजेंसी हटने के बाद डायरेक्टर ने 1977 में दोबारा फिल्म बनाई थी। 1977 में दोबारा बनी फिल्म मैं राज किरण, शबाना आजमी और सुरेखा सीकरी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थी। ज्ञात हो इससे पहले बनी इस फिल्म में राज बब्बर ने भी मुख्य भूमिका निभाई थी, लेकिन तब उस फिल्म के प्रिंट जला दिए गए थे।
फिल्म के निर्देशक नाहटा ने इंदिरा गांधी के लिए कहा था कि इंदिरा गांधी के रूप में देश को एक ऐसा प्र’धान’मं’त्री मिला है, जिसका नैतिकता से कुछ भी लेना देना नहीं और जिसके लिए परिणाम ही सब कुछ है