भारत जैसे देश में शादी का बंधन बहुत ही पवित्र माना जाता है। यह बंधन जन्मो जन्म तक निभाना ही होता है। यह तब खास हो जाती है जब उनकी लाइफ में बच्चे भी आ जाते हैं। लेकिन औरतों के मामले में मर्द की अपेक्षा यह बंधन और ज्यादा जिम्मेदारी भरा होता है।
बचपन से ही लड़कियों को शिक्षा दी जाती है कि उन्हें शादी के बाद किस तरह से अपने ससुराल में अर्जेस्ट करना है, क्योंकि यदि कोई भी बात ससुराल में बिगड़ गई, तो वह वहां से छुटकारा नहीं पा सकती और दूसरी शादी का तो सोचना भी पाप है। जैसे तैसे करके उन्हें उसी शादी में अर्जेस्ट करना होगा।
लेकिन अब पहले से जमाना काफी बदल चुका है। नई जेनरेशन इन पुरानी रूढ़िवादी बातों को नहीं मानती। आज हम यहां बात कर रहे हैं बदलती जेनरेशन की अब सोच भी बदल रही है। आज की पीढ़ी इस भारतीय समाज को बहुत कुछ सिखा रही है। पिछले समय की कुरीतियों को अब आज की जनरेशन इस समाज से निकाल फेंक रही है।
ऐसा ही एक मामला देखने को मिला है। एक सुशिक्षित बेटी ने अपनी विधवा मां की दोबारा शादी कराकर समाज के सामने एक मिसाल पेश की।
दरअसल हुआ कुछ ऐसा कि जयपुर की रहने वाली गीता अग्रवाल के पति की मौत मई 2016 में हार्ट अटैक से हो गई थी। तब से गीता के ऊपर पूरे घर की जिम्मेदारी थी। गीता अग्रवाल की एक बेटी है जिसका नाम संहिता है। संहिता जयपुर छोड़ गुड़गांव में एक निजी कंपनी में नौकरी करने लगी। संहिता के नौकरी के सिलसिले में दूर चले जाने से गीता अग्रवाल खुद को बिल्कुल अकेला महसूस करती थी।
गीता अग्रवाल की बेटी संहिता ने अपनी मां का अकेलापन दूर करने का उपाय खोज निकाला। इस बेटी ने अपनी मां के दुखों को समझते हुए, उनकी दोबारा शादी करने की हिम्मत दिखाई। बिना किसी की परवाह किए, गीता की बेटी ने अपनी मां की शादी के लिए वर की तलाश की और इसके बाद अपनी विधवा मां की दोबारा शादी करवाई। इससे संहिता की मां गीता अग्रवाल की जिंदगी में फिर से खुशियों के रंग भर गए। संहिता के इस कदम की हर तरफ तारीफ हो रही है।
संहिता बताती है कि जब से वह जयपुर छोड़ गुड़गांव में नौकरी के लिए आ गई, तब से उनकी मां बिल्कुल अकेले हो गई है।
बकौल संहिता, “ मुझे अपनी मां का अकेलापन किसी भी कीमत पर दूर करना था, इसलिए मैंने उनकी एक मेट्रोमोनियल साइट पर प्रोफाइल बना दी। जिसके बाद बांसवाड़ा के रहने वाले रेवेन्यू इंस्पेक्टर के.जी. गुप्ता ने उनसे संपर्क किया। गुप्ता जी की पत्नी की मौत 2010 में कैंसर से हो गई थी।”
संहिता ने उनसे मुलाकात करने के बाद गुप्ता जी की मुलाकात अपनी मां से करवाई और तब उन्होंने अपनी जिंदगी के बारे में सारी जानकारी दी। जब बेटी ने महसूस किया कि मां उस शख्स के साथ खुश है और उनकी अच्छी बन रही है। तब बेटी ने खुद ही यह रिश्ता पक्का कर दिया और मां की जिंदगी को जीने की एक नई वजह दे दी।
संहिता आगे कहती हैं कि अगर हम कभी दुखी हो तो हमें मां संभालती है लेकिन यदि माँ दुखी हो तो उसे भी संभालने के लिए कोई ना कोई होना चाहिए। जिंदगी में सब को एक साथी की तलाश होती है इसलिए मैंने अपनी मां के लिए भी एक जीवनसाथी चुन लिया।